- Kashi Patrika


मेरे हीरो: अस्सी में आशा से लबालब


किसी भी देश के इतिहास, वर्तमान या भविष्य की कल्पना कालजयी शख्सियतों के बिना नहीँ की जा सकती। ऐसी जाने कितनी ही हस्तियों की कही बातें या उनके संदर्भ हमारे मानस पटल पर अंकित हो जाते हैं, जो समय-असमय, विषम परिस्थितियों में भी हमारे धैर्य को डिगने नहीं देते। और मन के भीतर उम्मीद का दीया टिमटिमाता रहता है कि कठिनाइयों के बादल को चीर कर उजाला होगा, इसी आस से जीवन चलता रहता है। ठीक वैसे ही, जैसे पहाड़ों में बांस और रस्सी के सहारे बनी छोटी सी पुलिया से होकर लोग बड़ी नदी पार कर लेते हैँ। परंतु, इनमें शायद ही कोई हो जिनसे "आम आदमी" की मुलाकात या बातचीत का अवसर बन जाए। हां, कुछ ऐसे शख्स से परिस्थितिवश हम जरूर टकरा जाते हैं, जो आम का ही हिस्सा होकर भी जीवन को देखने के अपने नजरिए की वजह से आज खास में शुमार हैं।


मेरे हीरो इसलिए कि एक ही व्यक्ति या व्यक्तित्व जरूरी नहीं हर किसी को प्रेरित करे, मगर बहुतायत का प्रेरणास्रोत होने से इन्हें विशेष कहना ही उचित है। ऐसे ही एक हीरो से मुलाकात का अवसर तब मिला, जब मैं एम० जे० (पत्रकारिता में स्नातकोत्तर) कर रही थी। सौम्य चेहरे पर गजब का तेज और स्निग्ध मुस्कान लिए वह सभी की बात गौर से सुन रहे थे, जबकि वहां मौजूद हर कोई उन्हें सुनना चाहता था। असाधारण व्यक्ति के इस साधारण रूप ने उन्हें मेरा हीरो बना दिया। पत्रकारिता जगत में अच्युतानंद जी को किसी पहचान की जरूरत नहीं है, यहीँ कारण भी था कि वह कई खासमखास के बीच भी मुख्य अतिथि बन सेमिनार में आमंत्रित थे। इस दौरान उन्हें सिर्फ सुनने का मौका मिला, क्योंकि उनके आसपास बड़ी हस्तियों का जमघट था, टीस सी ही रह गई और कई वर्ष बीत गए।

"बिन मांगे मोती मिले..." कैसे यह बताना उचित नहीं होगा, तो उनसे करीब से मिलने का ही नहीँ, बल्कि साथ समय बिताने का अवसर मिला मुंबई में। अटल सम्मान के लिए उन्हें मुंबई आंमत्रित किया गया था। उनसे मिलने के लिए मुंबई के नामचीन पत्रकारों के साथ ही कई और क्षेत्र से जुड़े लोग भी मौजूद थे। कई तो उनके साथ सिर्फ एक फोटोग्राफ खिंचाने की जुगाड़ बना रहे थे, पर उनके चेहरे पर रंचमात्र भी अहम नहीं था। उनकी एक और बात मेरे दिल को छू गई, "उन्हें युवा पीढ़ी ज्यादा जोशीली और योग्य लगती है।" उन्होंने मुझे इसके लिए तर्क भी दिया कि अगली पीढ़ी हमेशा पिछली पीढी से समझदार होती है। मैं कुछ भौचक ही थी, क्योंकि इससे पहले किसी को जेनरेशन नेक्स्ट की तारीफ करते नहीँ सुना था। खास तो यह कि सब उनसे मिलने आए थे और वह आने वाले हर व्यक्ति को ही खास बताकर उनका परिचय करा रहे थे। सभी को उन्होंने न सिर्फ विशेष सम्मान दिया, बल्कि उनके नाम से पुकारा। बच्चों के लिए भी उनके पास उनसे जुड़ी बातें थीं करने को। दिन में लोगों का तांता लगा रहा, तो आराम न के बराबर मिला। उस दिन उनके सम्मान में आयोजित कार्यक्रम देर रात तक चला। तब भी अगली सुबह फ्लाइट के लिए वे तड़के उठ कर तैयार थे और चेहरे पर थकान की एक लकीर भी नहीं थी। वह हमें हाथ हिलाकर विदाई दे आंखों से ओझल हो गए।
मेरे पास बस हस्तीमल के ये शब्द रह गए" रहा फिर देर तक वो साथ मेरे, भले वो देर तक ठहरा नहीँ था...

क्रमशः..