- Kashi Patrika

आज हम सुबह सवेरे में चित्त के शांत और गंभीर होने के विषय में बात करेंगे। बहरी उथल पुथल से हमारे शरीर  का आतंरिक वातावरण भी अशांत हो जाता है। पूरी मानव संरचना ही समाज के एक ऐसे सूत्र में बंधी है कि हम चाह कर भी सामाजिक कियाक्लापों से पारस्परिक निर्भरता और आदान प्रदान से बहार नहीं निकल सकते। जब हम अपने चित्त की बात करते है और इसके शांत होने के विषय में प्रयास करते है तो हम वास्तव में अपने आस पास हो रहे सामाजिक बदलावों को सही ढंग से अपने ऊपर हावीं होने से बचाने का प्रयास कर रहे होतें हैं।
साधारण मान्यता के अनुसार प्राण के मूल में ही चित्त  का वास होता है। अगर हम प्राण को शांत करने में सफल हो जाते हैं तो है चित्त को भी शांत करने में सफल रहेंगे। हर एक की शांति का स्तर भी भिन्न होता है एक और जहाँ धन लोलुप व्यक्ति की लिप्सा धन के इर्द गिर्द ही शांत होती वही योगी का चित्त योग में ही शांत होता हैं।

चित्त को शांत करने का सबसे उत्तम उपाय है अपने मन को केंद्रित कर निर्गुण उपासना पर ध्यान केंद्रित करना। उस पार  ब्रह्म में की सर्वव्यापकता को स्वीकारना और उसे प्राप्त करने की दिशा में यथोचित प्रयास करना। पार ब्रह्म असीमित है और जो कार्य आप कर रहे हो उसे ही सर्वोत्तम ढंग से करना पार ब्रह्म को प्राप्त करने का साधन है।
जब भी आप इन विचारों से प्रेरित होकर किसी कार्य का निष्पादन करेंगे तो आप का चित्त शांत और निश्छल हो जाएगा।

आज हम पश्चिमोत्तानासन के विषय में जानेंगे-
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